समुद्र मंथन की घटना में भगवान विष्णु ने मोहिनी अवतार क्यू लिया था?

 

समुद्र मंथन की घटना में भगवान विष्णु ने मोहिनी अवतार लिया था, जो कि एक विशेष और महत्वपूर्ण रूप था। यह अवतार भगवान विष्णु के सर्वश्रेष्ठ रूपों में से एक माना जाता है और इसे माया, आकर्षण, और छल के प्रतीक के रूप में देखा जाता है। इस अवतार के माध्यम से भगवान विष्णु ने असुरों को चकमा दिया और देवताओं को अमृत प्रदान किया, जिससे सृष्टि में संतुलन बना रहा।

1. मोहिनी अवतार का संदर्भ

समुद्र मंथन के दौरान, देवताओं और असुरों ने मिलकर अमृत प्राप्त करने के लिए समुद्र मंथन किया था। इस मंथन से भगवान धन्वन्तरि अमृत कलश के साथ प्रकट हुए। जब असुरों ने देखा कि अमृत प्राप्त हो गया है, तो वे आपस में झगड़ने लगे और अमृत को छीनने की कोशिश करने लगे। उनके आपसी झगड़े के कारण अमृत का कोई भी पात्र उस समय नहीं पी सका। यह देखकर देवता घबराए और भगवान विष्णु से सहायता की प्रार्थना की।

भगवान विष्णु ने तुरंत अपनी माया का उपयोग किया और मोहिनी अवतार में प्रकट हुए। इस रूप में भगवान विष्णु ने पूरी तरह से स्त्री का रूप लिया, जो सुंदरता, आकर्षण और सब प्रकार के स्त्रीगुणों से परिपूर्ण था। भगवान विष्णु के इस रूप को देखकर असुर मोहित हो गए और उनकी बुद्धि ने काम करना बंद कर दिया।

2. मोहिनी अवतार का उद्देश्य

भगवान विष्णु ने मोहिनी रूप धारण करके असुरों के बीच यह संदेश दिया कि वे अमृत को बराबरी से बांट देंगे। असुरों को मोहिनी के रूप में भगवान विष्णु के छल का पता नहीं चला और वे भगवान की माया में फंसे गए। मोहिनी ने दो पंक्तियां बनाई—एक पंक्ति देवताओं के लिए और दूसरी पंक्ति असुरों के लिए।

इसके बाद मोहिनी ने अमृत को केवल देवताओं को ही पिलाया और असुरों को इसके बिना छोड़ दिया। इस छल के माध्यम से भगवान विष्णु ने देवताओं को अमृत दिलवाया और असुरों को वंचित कर दिया। असुरों को यह समझ नहीं आया कि क्या हो रहा है, क्योंकि वे भगवान विष्णु के रूप में पूर्ण रूप से मोहित थे।

3. राहु का छल

हालांकि, एक असुर राहु इस छल को समझ गया। उसने देवताओं की पंक्ति में बैठकर अमृत पान किया। जब राहु ने अमृत पी लिया, तो उसकी पहचान देवताओं द्वारा उजागर हो गई। चन्द्रमा और सूर्य ने इस छल को पहचान लिया और भगवान विष्णु को सूचित किया।

भगवान विष्णु ने तुरंत अपनी सुदर्शन चक्र से राहु का सिर काट डाला, लेकिन क्योंकि राहु ने अमृत पी लिया था, उसके शरीर का निचला हिस्सा जीवित रहा और सिर वाला भाग जो पृथ्वी से अलग हो गया, उसे राहु और शरीर वाला भाग जो नीचे रह गया, वह केतु कहलाया। इसके बाद से राहु और केतु दोनों ही छाया ग्रह बन गए। इन दोनों ग्रहों का ज्योतिष में महत्वपूर्ण स्थान है और वे अन्य ग्रहों पर अपना प्रभाव डालते हैं।

4. राहु और सूर्य-चन्द्रमा का वैर

राहु के सिर के कटने के बाद, उसके मुख और शरीर के भागों के बीच एक अजीब प्रकार का वैर पैदा हो गया। राहु के सिर वाला भाग चन्द्रमा और सूर्य से प्रतिशोध लेने के लिए हमेशा तैयार रहता है। इस कारण से राहु और चन्द्रमा तथा सूर्य के बीच आज भी शत्रुता बनी हुई है, जिसे ग्रहण के रूप में देखा जाता है। राहु और सूर्य, चन्द्रमा के बीच ग्रहण का समय विशेष रूप से शत्रुता और संघर्ष का प्रतीक है।

5. देवताओं की पुनः विजय

भगवान विष्णु के मोहिनी रूप के कारण देवताओं को अमृत प्राप्त हुआ और उनकी शक्ति फिर से बढ़ी। अमृत पीने के बाद, देवताओं की शक्ति का पुनर्निर्माण हुआ और उन्होंने असुरों पर आक्रमण किया। देवताओं ने असुरों को पराजित किया और स्वर्ग का राज्य फिर से प्राप्त किया। यह विजय देवताओं के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण थी, क्योंकि उन्होंने विष्णु भगवान की कृपा से अमरता प्राप्त की थी और अब वे स्वर्ग में स्थिर हो गए थे।

6. माता लक्ष्मी का प्रादुर्भाव

समुद्र मंथन के समय ही माता लक्ष्मी का जन्म भी हुआ था। लक्ष्मी जी धन, समृद्धि और सौभाग्य की देवी मानी जाती हैं। जब लक्ष्मी का प्रादुर्भाव हुआ, तो उन्होंने भगवान विष्णु का वरण किया। उनका जन्म समुद्र मंथन से हुआ था और इसे विशेष रूप से लक्ष्मी पूजा के समय याद किया जाता है। जो लोग माता लक्ष्मी के जन्म की इस कथा को सुनते हैं, वे हमेशा उनके आशीर्वाद से धन्य होते हैं और उन्हें समृद्धि प्राप्त होती है।

निष्कर्ष

भगवान विष्णु का मोहिनी अवतार समुद्र मंथन के दौरान हुआ था और इसने असुरों के अधीन अमृत को छीनकर देवताओं को दिया। भगवान विष्णु के इस रूप ने न केवल असुरों को पराजित किया, बल्कि सृष्टि में संतुलन बनाए रखने के लिए महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। मोहिनी रूप में भगवान विष्णु की माया, आकर्षण और कूटनीति ने देवताओं के लिए विजय सुनिश्चित की और असुरों के लिए पराजय सुनिश्चित की। इस अवतार की कथा हमें यह सिखाती है कि भगवान के रूप और उनकी शक्ति में असीमित सामर्थ्य होता है, जो किसी भी कठिन परिस्थिति में उचित मार्गदर्शन और सफलता प्राप्त करने में सहायक होता है।

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