समुद्र मंथन में भगवान विष्णु ने मोहिनी अवतार क्यों लिया?
1. समुद्र मंथन: पृष्ठभूमि
समुद्र मंथन की योजना तब बनी जब देवता और असुर, दोनों अमरत्व के लिए अमृत की तलाश में थे। इसके लिए मंदार पर्वत को मथनी और वासुकी नाग को रस्सी बनाकर समुद्र का मंथन किया गया। इस मंथन से अनेक रत्नों के साथ-साथ अमृत कलश भी निकला, जिसे लेकर विवाद उत्पन्न हो गया।
2. अमृत को लेकर संघर्ष
जब भगवान धन्वंतरि अमृत कलश लेकर प्रकट हुए, तो असुरों ने बलपूर्वक उसे हथियाने की कोशिश की। वे अमृत पीकर अमर होना चाहते थे और देवताओं पर स्थायी विजय प्राप्त करना चाहते थे। इससे उत्पन्न स्थिति को देखकर देवता भयभीत हो गए और उन्होंने भगवान विष्णु से सहायता की प्रार्थना की।
3. मोहिनी अवतार: विष्णु की माया का रूप
भगवान विष्णु ने असुरों को धोखा देने के लिए मोहिनी रूप धारण किया—एक अति सुंदर स्त्री का रूप जो आकर्षण, माया और बुद्धि की प्रतीक थी। मोहिनी के रूप को देखकर सभी असुर उसके वश में हो गए। उन्होंने स्वयं ही अमृत बाँटने का कार्य मोहिनी को सौंप दिया।
4. अमृत का वितरण: चतुराई से किया गया छल
मोहिनी ने दो पंक्तियाँ बनाईं—एक देवताओं की और दूसरी असुरों की। फिर वह केवल देवताओं को अमृत पिलाने लगी, जबकि असुर यह सोचते रहे कि उनका भी नंबर आएगा। जब तक असुर कुछ समझ पाते, तब तक अमृत देवताओं को मिल चुका था।
5. राहु का भेद और उसका परिणाम
एक असुर राहु इस छल को
भांप गया और देवताओं
की पंक्ति में बैठकर अमृत
पीने लगा। चंद्रमा और
सूर्य ने उसे पहचान
लिया और भगवान विष्णु
को सूचित किया। भगवान ने सुदर्शन चक्र
से उसका सिर काट
दिया। लेकिन क्योंकि उसने अमृत पी
लिया था, उसका सिर
और धड़ अमर हो
गया।
- सिर वाला भाग "राहु" और धड़ वाला भाग "केतु" कहलाया।
- आज भी राहु और केतु को छाया ग्रह माना जाता है, जो सूर्य और चंद्रमा से वैर रखते हैं। इसी कारण सूर्यग्रहण और चंद्रग्रहण होते हैं।
6. देवताओं की विजय और संतुलन की पुनर्स्थापना
अमृत के प्रभाव से देवताओं की शक्तियाँ पुनः जाग्रत हो गईं। उन्होंने असुरों को युद्ध में पराजित किया और स्वर्ग को पुनः प्राप्त किया। यह विजय केवल शक्ति से नहीं, बल्कि नीति और चातुर्य से मिली, जो भगवान विष्णु की मोहिनी माया के कारण संभव हुई।
7. लक्ष्मी जी का प्रादुर्भाव
इसी समुद्र मंथन के समय माता लक्ष्मी का भी प्राकट्य हुआ। वे समुद्र से उत्पन्न हुई थीं और उन्होंने भगवान विष्णु को अपना पति रूप में वरण किया। इस घटना से स्पष्ट होता है कि समुद्र मंथन केवल अमृत प्राप्ति ही नहीं, बल्कि अनेक दिव्य शक्तियों के प्रकट होने का कारण बना।
निष्कर्ष
भगवान विष्णु का मोहिनी अवतार केवल एक रूपांतरण नहीं था, बल्कि यह दिखाता है कि जब बल और युद्ध विफल हो जाएं, तब बुद्धि, नीति और माया से भी विजय प्राप्त की जा सकती है। मोहिनी अवतार एक अद्वितीय उदाहरण है जहाँ ईश्वर ने स्त्री रूप धारण कर सृष्टि में संतुलन बनाए रखा।
FAQs (अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न)
प्रश्न
1: क्या मोहिनी वास्तव में स्त्री थीं?
उत्तर: नहीं, मोहिनी भगवान विष्णु का ही रूप
था जो उन्होंने असुरों
को भ्रमित करने के लिए
धारण किया था।
प्रश्न
2: मोहिनी अवतार का उद्देश्य क्या था?
उत्तर: अमृत को असुरों
से छीनकर देवताओं को पिलाना ताकि
सृष्टि में संतुलन बना
रहे।
प्रश्न
3: राहु और केतु कैसे बने?
उत्तर: राहु ने छल
से अमृत पिया, लेकिन
पहचान लिए जाने पर
उसका सिर काट दिया
गया। अमरत्व के कारण उसका
सिर राहु और धड़
केतु कहलाया।
उत्तर: हाँ, मोहिनी अवतार का वर्णन भगवान शिव के साथ जुड़ी कथा में भी आता है, जहाँ वे मोहिनी के रूप पर मोहित हो जाते हैं।
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