क्यू हर महिने पौर्णिमा और अमावस्या आती है? कृष्ण पक्ष और शुक्ल पक्ष क्या होता है? जानिए रहस्य....
इस लेख में हम
जानेंगे:
- पौर्णिमा और अमावस्या क्या हैं?
- शुक्ल पक्ष और कृष्ण पक्ष का धार्मिक, खगोलीय और वैज्ञानिक महत्व
- प्रमुख व्रत, त्योहार और कथाएँ
- दैनिक जीवन में इन तिथियों का प्रभाव
🌕 पौर्णिमा (पूर्णिमा): जब चंद्रमा होता है पूर्ण
क्या
है पौर्णिमा?
पौर्णिमा
उस तिथि को कहते
हैं जब चंद्रमा पूर्ण
रूप से दिखाई देता
है। यह स्थिति तब
आती है जब पृथ्वी
चंद्रमा और सूर्य के
बीच होती है और
सूर्य की रौशनी चंद्रमा
की पूरी सतह को
प्रकाशित करती है।
धार्मिक
और सांस्कृतिक महत्व
पर्व/तिथि |
महत्व |
कार्तिक पूर्णिमा |
गंगा स्नान, दीपदान, भगवान विष्णु की पूजा, देव
दीपावली |
बुद्ध पूर्णिमा |
भगवान बुद्ध का जन्म, ज्ञान
और निर्वाण दिवस |
गुरु पूर्णिमा |
गुरुजनों को समर्पित दिन,
शिक्षकों का सम्मान |
श्रावण पूर्णिमा |
रक्षाबंधन का पर्व, भाई-बहन का स्नेह |
पौराणिक
संदर्भ
- महाभारत में युधिष्ठिर पौर्णिमा को विशेष दान करते थे।
- भगवान विष्णु के 24 अवतारों में कई ने पौर्णिमा को अवतार लिया।
🌑 अमावस्या: जब चंद्रमा पूरी तरह अदृश्य होता है
क्या
है अमावस्या?
अमावस्या
उस तिथि को कहते
हैं जब चंद्रमा पृथ्वी
और सूर्य के बीच होता
है और उसकी सूर्य
से विपरीत सतह पर प्रकाश
नहीं पड़ता, जिससे वह हमें दिखाई
नहीं देता।
धार्मिक
और पौराणिक महत्व
अमावस्या |
महत्व और परंपराएँ |
शनि अमावस्या |
शनि देव की पूजा, अशुभ
प्रभाव से बचाव |
सोमवती अमावस्या |
दांपत्य सुख और संतान सुख
की कामना |
दीपावली की अमावस्या |
धन की देवी
लक्ष्मी की पूजा, अंधकार
से प्रकाश की ओर |
पितृ
पूजन और श्राद्ध
- इस दिन पितरों की पूजा विशेष रूप से की जाती है।
- तर्पण और दान से पूर्वजों की आत्मा को शांति मिलती है।
🌓 कृष्ण पक्ष और शुक्ल पक्ष: चंद्र चक्र की दो अवस्थाएँ
कृष्ण
पक्ष (Waning
Phase)
- प्रारंभ: पूर्णिमा के बाद
- समापन: अमावस्या पर
- विशेषताएँ:
- चंद्रमा की रोशनी घटती है
- उपवास, साधना, ध्यान का समय
- मासिक शिवरात्रि इसी पक्ष में आती है
शुक्ल
पक्ष (Waxing
Phase)
- प्रारंभ: अमावस्या के बाद
- समापन: पूर्णिमा पर
- विशेषताएँ:
- चंद्रमा की रोशनी बढ़ती है
- शुभ कार्यों के लिए उत्तम समय (विवाह, गृह प्रवेश)
- नवरात्रि, अक्षय तृतीया जैसे पर्व इसी पक्ष में आते हैं
🧘♂️ वैज्ञानिक और खगोलीय दृष्टिकोण
तिथि |
खगोलीय स्थिति |
प्रभाव |
पूर्णिमा |
चंद्रमा पूरी तरह सूर्य से प्रकाशित |
मानसिक ऊर्जा, जल का उच्च
ज्वार |
अमावस्या |
चंद्रमा सूर्य के साथ संरेखित,
अदृश्य |
ध्यान और साधना के
लिए उपयुक्त समय |
नोट:
पूर्णिमा और अमावस्या का
प्रभाव केवल धार्मिक ही
नहीं, बल्कि शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य पर भी पड़ता
है। कई वैज्ञानिक शोधों
के अनुसार, इन तिथियों पर
नींद, व्यवहार और रक्तचाप में
भी बदलाव आ सकता है।
तिथि |
करने योग्य कार्य |
टालने योग्य कार्य |
पूर्णिमा |
ध्यान, व्रत, दान, परिवार के साथ समय |
भारी निर्णय (यदि मन अशांत हो) |
अमावस्या |
पितृ तर्पण, साधना, शांति पूजन |
नई शुरुआत, यात्रा
(यदि कुंडली अनुकूल न हो) |
🔚 निष्कर्ष
पौर्णिमा
और अमावस्या न केवल धार्मिक
दृष्टि से पवित्र तिथियाँ
हैं, बल्कि खगोलीय और जीवनशैली के दृष्टिकोण से
भी महत्वपूर्ण हैं। इन तिथियों
के आधार पर भारत
में न केवल पर्व
और व्रत तय होते
हैं, बल्कि मानसिक और आध्यात्मिक ऊर्जा
को भी संतुलित करने
में मदद मिलती है।
👉 अगली बार
जब आप कैलेंडर में
पूर्णिमा या अमावस्या देखें,
तो सिर्फ तिथि न समझें
– वह दिन आपके मानसिक,
भावनात्मक और आध्यात्मिक जीवन
को गहराई से प्रभावित कर
सकता है।
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