अधिक मास (पुरुषोत्तम मास) क्या है? महत्व, कारण और धार्मिक नियम

अधिक मास क्या होता है?

🧭 अधिक मास की परिचय

अधिक मास, जिसे पुरुषोत्तम मास भी कहा जाता है, हिंदू पंचांग का एक विशेष धार्मिक महीना होता है। यह प्रत्येक 2.5 से 3 वर्षों में एक बार आता है, जब चंद्र वर्ष और सौर वर्ष के बीच समय का अंतर बढ़ जाता है। यह मास भगवान विष्णु को समर्पित है और धार्मिक साधना, व्रत, दान तथा तीर्थ यात्रा के लिए अत्यंत शुभ माना जाता है।


🔭 अधिक मास क्यों आता है?

  • सौर मास: सूर्य की गति पर आधारित (लगभग 365 दिन)
  • चंद्र मास: चंद्रमा की गति पर आधारित (लगभग 354 दिन)

दोनों के बीच ~11 दिन का अंतर होने से हर 30-32 महीने में एक अतिरिक्त चंद्र मास जोड़ा जाता है, जिसे अधिक मास कहते हैं। इससे पंचांग में संतुलन बना रहता है।


🌺 अधिक मास का धार्मिक और आध्यात्मिक महत्व

  1. पुरुषोत्तम मास: भगवान विष्णु को समर्पित
  2. पुण्य मास: इस मास में किए गए कार्यों का फल कई गुना अधिक मिलता है
  3. साधना का समय: आत्मिक विकास, ध्यान, और धर्म पालन का श्रेष्ठ काल

📿 अधिक मास में किए जाने वाले प्रमुख कार्य

धार्मिक क्रियाएं

उद्देश्य

विष्णु पूजा

भक्ति, आत्मिक उन्नति

व्रत

मन और शरीर की शुद्धि

दान और सेवा

पुण्य अर्जन, करुणा का विस्तार

तीर्थ यात्रा

मोक्ष और आध्यात्मिक शांति की प्राप्ति

धार्मिक ग्रंथ पाठ

ज्ञान और आत्म-शुद्धि


🔆 अधिक मास के प्रमुख धार्मिक अनुष्ठान

  1. विष्णु सहस्रनाम पाठ
  2. रुद्राभिषेक
  3. महामृत्युंजय जाप
  4. संतान प्राप्ति के लिए पूजा
  5. भागवत, रामायण, गीता पाठ

🛐 अधिक मास की प्रमुख तिथियाँ

  • अधिक शुक्ल पक्ष प्रारंभ: अधिक मास की शुरुआत
  • अधिक चतुर्दशी: भगवान विष्णु और शिव की विशेष पूजा
  • अधिक पूर्णिमा: उपवास, समापन पूजा, दान और व्रत

💠 अधिक मास में क्या करें और क्या करें?

✔️ करें:

  • प्रतिदिन विष्णु नाम जप या पाठ
  • ब्राह्मण भोज अन्नदान
  • धार्मिक पुस्तकों का अध्ययन
  • संयमित आहार, विचार और व्यवहार

करें:

  • विवाह, मुंडन जैसे शुभ कार्य
  • घर खरीद-बिक्री जैसे स्थायी निर्णय
  • लोभ, क्रोध और व्यर्थ समय गवाना

📘 अधिक मास: FAQ (अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न)

Q1: अधिक मास कितने वर्षों में आता है?

उत्तर: लगभग हर 2.5 से 3 वर्षों में एक बार।

Q2: अधिक मास में कौन से कार्य वर्जित हैं?

उत्तर: विवाह, गृहप्रवेश, मुंडन आदि शुभ कार्य इस मास में वर्जित माने जाते हैं।

Q3: क्या इस मास में दान का विशेष महत्व है?

उत्तर: हाँ, इस मास में अन्न, जल, वस्त्र, धन आदि का दान विशेष पुण्यदायी होता है।


निष्कर्ष

अधिक मास एक आध्यात्मिक जागृति का अवसर है, जहाँ हम सांसारिक जीवन से हटकर आत्मिक उन्नति की ओर अग्रसर होते हैं। यह मास हमें संयम, साधना और सेवा का संदेश देता है। भगवान विष्णु की भक्ति, दान, और तप इस माह के केंद्र में रहते हैं, जिससे जीवन में शांति, सौभाग्य और सकारात्मक ऊर्जा आती है।


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