मासिक धर्म और हमारे पूर्वजों की मान्यताएं: क्यों मानते थे वे स्त्री को अपवित्र?
लेख सारांश:
भारत सहित कई संस्कृतियों में मासिक धर्म (Period) को लेकर अनेक मान्यताएं और भ्रांतियां मौजूद हैं। क्या यह केवल धार्मिक परंपरा है या इसका कोई वैज्ञानिक आधार है? इस लेख में हम मासिक धर्म के सामाजिक, धार्मिक, ऐतिहासिक और वैज्ञानिक पहलुओं का विश्लेषण करेंगे ताकि हम यह जान सकें कि क्या वाकई मासिक धर्म के समय स्त्री को अपवित्र मानना उचित है।
🔸 1. धार्मिक ग्रंथों में मासिक धर्म का उल्लेख
1.1 वेदों
और पुराणों की भूमिका
हिंदू
धर्म के कुछ प्राचीन
ग्रंथों जैसे मनुस्मृति, ऋग्वेद, और महाभारत में मासिक धर्म
के समय स्त्री को
धार्मिक गतिविधियों से दूर रहने
की बात कही गई
है। यह नियम किसी
"अशुद्धता" के कारण नहीं,
बल्कि उस समय आराम
और विश्राम की आवश्यकता को
ध्यान में रखते हुए
बनाए गए थे।
📌 उदाहरण:
मनुस्मृति कहती है कि
"स्त्री रजस्वला अवस्था में किसी प्रकार
का शारीरिक परिश्रम या धार्मिक कर्म
न करे" — इसका उद्देश्य उसे
आराम देना था, न
कि उसे 'अशुद्ध' ठहराना।
1.2 मंदिर
प्रवेश पर प्रतिबंध
कई धार्मिक स्थलों पर आज भी
मासिक धर्म के समय
महिलाओं के प्रवेश पर
रोक है, जैसे केरल
के सबरीमला मंदिर। परंतु 2018 में सुप्रीम कोर्ट
ने इस पर रोक
को असंवैधानिक घोषित किया, जिससे यह स्पष्ट हुआ
कि यह पाबंदी केवल
परंपरा पर आधारित थी,
न कि किसी वैज्ञानिक
या नैतिक आधार पर।
🔸 2. मासिक धर्म का वैज्ञानिक पक्ष
2.1 क्या
मासिक धर्म के दौरान शरीर "अशुद्ध" होता है?
नहीं।
मासिक धर्म एक पूर्णत:
प्राकृतिक जैविक प्रक्रिया है, जिससे गर्भाशय
की परत बाहर निकलती
है। यह शरीर की
सफाई या शुद्धिकरण की
प्रक्रिया है, अशुद्धता नहीं।
🔬 WHO (World Health
Organization) और UNICEF
के अनुसार:
“Menstruation is not impure. It is a normal biological
process and an essential sign of reproductive health.”
2.2 पीरियड्स
में महिलाओं की स्थिति
- शारीरिक बदलाव: थकावट, पेट दर्द, मूड स्विंग्स
- हार्मोनल असंतुलन: एस्ट्रोजन और प्रोजेस्ट्रोन में उतार-चढ़ाव
- इससे कोई भी स्त्री “कमज़ोर” या “अक्षम” नहीं होती — केवल आराम की आवश्यकता होती है।
🔸 3. सांस्कृतिक दृष्टिकोण: कहाँ से आई ये सोच?
3.1 पारंपरिक
समाज की संरचना
प्राचीन
काल में जब विज्ञान
और स्वच्छता का ज्ञान सीमित
था, तब मासिक धर्म
को लेकर अनेक भ्रांतियां
फैल गईं। महिलाओं को
एकांतवास में रखा जाता
था ताकि उन्हें आराम
मिल सके — धीरे-धीरे इसे
'अशुद्धता' से जोड़ दिया
गया।
3.2 समाज
में बदलाव की बुनियाद
अब कई ग्रामीण क्षेत्रों
में भी NGOs और सरकार की
ओर से मासिक धर्म
पर जागरूकता फैलाई जा रही है।
उदाहरण के तौर पर,
"Menstrual Hygiene Scheme" (MHS) के
तहत भारत सरकार लड़कियों
में सेनेटरी पैड्स के उपयोग को
बढ़ावा दे रही है।
🔸 4. आधुनिक सामाजिक आंदोलन और सुधार
4.1 शिक्षा
और जागरूकता
- स्कूलों में अब पीरियड्स को लेकर खुलकर शिक्षा दी जाती है।
- Netflix
पर "Period.
End of Sentence" जैसी
डॉक्यूमेंट्री ने इस विषय को अंतरराष्ट्रीय मंच पर उठाया।
4.2 सोशल
मीडिया अभियानों का प्रभाव
- #HappyToBleed
- #PeriodPositive
- #MenstruationMatters
ये अभियान महिलाओं की पीरियड्स को
लेकर मानसिकता बदलने में सहायक रहे
हैं।
🔸 5. actionable सुझाव: आप क्या कर सकते हैं?
स्थिति |
क्या करें? |
घर में मासिक
धर्म पर पाबंदी हो |
तथ्य आधारित चर्चा करें, शिक्षा से समझाएं |
मंदिर प्रवेश से रोका जाए |
संबंधित धार्मिक संगठन से संपर्क करें,
कानून का सहारा लें |
शर्म या असहजता हो |
डॉक्टर या मेंटल हेल्थ
प्रोफेशनल से बात करें |
बेटियों को जानकारी न
हो |
स्कूल स्तर पर पीरियड्स शिक्षा
अनिवार्य करें |
🔸 6. निष्कर्ष
मासिक
धर्म कोई पाप नहीं, प्रकृति का चमत्कार है।
स्त्री को इस समय
अपवित्र कहना न केवल
वैज्ञानिक रूप से गलत
है, बल्कि यह सामाजिक भेदभाव
को बढ़ावा देता है। आज
आवश्यकता है ज्ञान, समझ और समानता की भावना को बढ़ावा देने
की।
💡 हमें एक ऐसे समाज की ओर बढ़ना है, जहां पीरियड्स पर खुली चर्चा हो, न कि चुप्पी।
📌 लेख को पढ़ने के बाद आप क्या करें:
- इसे अपने परिवार के सदस्यों, विशेषकर बच्चों और किशोरों से साझा करें।
- अपनी वेबसाइट या सोशल मीडिया पर साझा कर चर्चा शुरू करें।
- यदि आप शिक्षक हैं, तो कक्षा में "मेंस्ट्रुअल हेल्थ" पर सेशन जरूर रखें।
Post a Comment